अहंकार \ इन्द्रजीत कमल - Inderjeet Kamal

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Tuesday, 12 May 2015

अहंकार \ इन्द्रजीत कमल


हमारे शहर में चीनी घी का एक बहुत बड़ा कारोबारी था | एक बार उसके पास बैठ कर बातें करने का मौका मिला | उसकी बालें सुन कर मुझे बहुत हैरानी हुई | मैंने अचानक पूछ लिया ," लाला जी , आपको  कबी कबी इतने बड़े कारोबार और जायदाद का अहंकार तो होता होगा ? "
" हाँ , होता है ! " कह कर वो  खड़ा हो गया और मुझे अपने पीछे आने के लिए कहा | मई लाला के पीछे चल पड़ा | पीछे बहुत बड़ा गोदाम था | हम उस गोदाम से निकल  कर एक छोटे से अँधेरे कमरे में पहुंच गए | लाला ने कमरे की बिजली जलाई जो बहुत ही कम थी | मैंने देखा सामने एक ठेली खड़ी थी , जिसके अंदर एक भठ्टी फिट की गई थी | भठ्टी के ऊपर एक कड़ाई थी , जिस में एक छलनी रखी हुई थी | मैंने बहुत ध्यान से लाला को देखा तो उसने छलनी पकड़ कर हिलानी शुरू कर दी और साथ ही कहा ," जब मुझे कभी  हंकार होता है तो मैं इस कमरे में आ कर इस कड़ाई में छलनी हिला कर अपने पुराने दिन याद कर लेता हूँ |" #KamalDiKalam
उसने बताया कि कोई दिन थे जब वो इसी ठेली पर पकौड़े तल कर बेचता था |

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