पगड़ी \ इन्द्रजीत कमल - Inderjeet Kamal

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Saturday, 6 June 2015

पगड़ी \ इन्द्रजीत कमल

मैं अपने एक दोस्त की कपड़े की दुकान पर बैठा उसके साथ बातें के रहा था | एक नौजवान आया जो दुकानदार का परिचित था | उसने लिफाफे से एक पगड़ी निकाली और कहने लगा ," यार ये रंग बदल कर कोई और देदे |मुझे  ये  रंग पसंद नहीं है |"
दोस्त ने कहा ," ये पगड़ी तो मेरी दुकान की नहीं है |" #KamalDiKalam
नौजवान बोला ," हाँ , वो तो मुझे पता है | ये मेरे ससुराल वालों ने दी है |"
उस नौजवान को उस दूकान से भी कोई रंग पसंद न आया |जब उस नौजवान को मसला हल होता नजर नहीं आया तो उसने कहा ," यार तूं ये पगड़ी रख ले और मुझे पैसे देदे |"
दोस्त ने इनकार कर दिया तो वो नौजवान ढीला सा मुंह बना कर जाने लगा तो मैंने जाते जाते कहा ," ससुराल वालों को कहना कि अगली बार कोई वस्तु देना तो अच्छी सी देना , बेचने में मुश्किल होती है |

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