जब मेरी टांग पे गोली लगी \ इन्द्रजीत कमल - Inderjeet Kamal

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Friday, 15 May 2015

जब मेरी टांग पे गोली लगी \ इन्द्रजीत कमल

                                            बात कई वर्ष पुरानी है | पंजाब में बुरे हालात चल रहे थे |मैनें पट्टी ( अमृतसर ) से जालन्धर एक अख़बार के दफ्तर जाना था |बस स्टैंड पर पहुंचा तो बस तैयार खड़ी थी |ख़ुशी हुई कि समय पर पहुंच कर वापस आ जाऊंगा | बस में बैठा ही था कि एक औरत अपने छोटे से बच्चे के साथ मेरे साथ वाली सीट पर बैठ गई | मैंने अपने बैग से किताब निकाली और पढने लगा |बस में  कई तरह के हाकर आए और आपना समान बेच कर चले गए | मैं किताब  पढने में मस्त रहा | पता ही नहीं चला कब जालन्धर का बस स्टैंड आ गया |#KamalDiKalam 
                                               मैं बस से उतरने ही लगा था कि मुझे महसूस हुआ कि मेरी टांग पर कुछ लगा है | मैनें ध्यान से देखा कि मेरी टांग पर गोली लगी थी |अब कुझे समझ आई कि मेरे साथ वाली सीट पर बैठी औरत ने अपने बच्चे को संतरे की गोलियां लेकर दी थीं | ये गोली ज़रूर बच्चे के मुंह से गिरी होगी और गीली होने के कारण मेरी टांग पर लग गई | खैर ! मैंने अपनी टांग से गोली उतारी और उसे फेंक कर अपने काम पर चला गया |

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